50 सालों से चम्बल का मिथक!
चंबल में मंत्री बनने के बाद जनता ने चटाई दिग्गजों को धूल
भोपाल । मध्य प्रदेश का चंबल इलाका जो अपने बगावती स्वर के लिए जाना जाता है। यहां की जनता कब किसकी खिलाफ हो जाए या किसी को नहीं पता और कब किसको राजनीति के उच्च शिखर पर पहुंचा दे, इसकी भी जानकारी किसी को नहीं मिलती है। ऐसे ही चंबल के कई किस्से हैं जो राजनीति के शासन में काफी दिलचस्प है और ऐसा ही या मुरैना जिले से जुड़ा दिलचस्प किस्सा है। यहां दर्जन भर ऐसे मंत्री है जिनका पहले जनता का प्यार मिला फिर जनता ने उसे ही नकार दिया।
पिछले 50 सालों से नहीं तोड़ पाया कोई चुनावी मिथक: चंबल के मुरैना जिले का मिथक है कि जो मंत्री बना वह अगला चुनाव नहीं जीता है। मिथक यह है कि सन 1972 से 2020 तक जिले की राजनीति में साथ राजनेता मंत्री बने, लेकिन मंत्री बनते ही अगले ही चुनाव में उन्हें हर का सामना करना पड़ा। इसमें कई कद्दावर नेता तो ऐसे हैं जो एक दो नहीं बल्कि तीन-तीन बार चुनाव जीते। लेकिन मंत्री बनने के बाद चुनाव हारने का मीथक नहीं तोड़ सके। यह सिलसिला पिछले 50 सालों से यहां चला आ रहा है और इसे अभी तक कोई नहीं तोड़ पाया है।जबर सिंह जैसे कद्दावर नेता भी नहीं बचा पाए साख: चंबल के कद्दावर नेता कहे जाने वाले बाबू जबर सिंह 1977 में जनता पार्टी से चुनाव जीते तो जनता पार्टी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। लेकिन मंत्री बनने के बाद अगला चुनाव 1980 में सुमावली विधानसभा से लड़े और वह अपनी जमानत तक नहीं बचा सके। इसी प्रकार 1967 में मुरैना से पहले चुनाव जीते जनसंख्या के कद्दावर नेता जाहर सिंह 1977 में सुमावली विधानसभा से भी चुनाव जीते। मंत्रिमंडल फेर बदल के बीच जाहर सिंह को सरकार में संसदीय सचिव बना दिया, लेकिन 1980 में मुरैना सीट से चुनाव हार गये।
दो बार मंत्री बने यह नेता, दोनों बार हारे चुनाव
2003 में आईजी पद से इस्तीफा देकर मुरैना विधानसभा से चुनाव जीतने वाले भाजपा के रुस्तम सिंह को उमा भारती सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया। लेकिन 2008 में वह दूसरा चुनाव हार गये। 2013 में दोबारा चुनाव जीते और दोबारा कैबिनेट मंत्री बने, लेकिन 2018 में जनता ने फिर उन्हें नकार दिया। इसी प्रकार 1993 वह 1998 में सुमावली से बसपा से एदल सिंह कंसाना चुनाव जीते, लेकिन 1998 में बसपा छोड़ दिग्विजय सिंह सरकार में शामिल हो गए और पंचायत एवं ग्रामीण विकास राज्य मंत्री बने मंत्री बनने के बाद अगला चुनाव 2003 में हार गये। 2018 में कांग्रेस सुमावली से फिर चुनाव जीता, लेकिन कांग्रेस के 22 विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए। 2019 में प्रदेश में भाजपा सरकार बनी मंत्री बने, लेकिन 2020 में सुमावली से भाजपा में उप चुनाव हार गए।