मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग की एक अनुशंसा का राज्य शासन द्वारा पूर्ण पालन कर प्रतिवेदन दिया गया है। जिस मामले में आयोग की अहम अनुशंसा का पालन किया गया है, वह इंदौर जिले से संबंधित है।

उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग द्वारा एक समाचार पत्र में प्रकाशित ‘‘प्रसूता की मौत, 2.40 लाख रूपये के बिल पर बंधक बनाया शव’’ शीर्षक खबर पर संज्ञान लेकर प्रकरण क्र.- 1134/इंदौर/2018 दर्जकर राज्य शासन को अनुशंसा की थी।

मामले में आयोग ने अपनी तत्कालीन अनुशंसा में कहा था कि ‘‘उपचार के देयकों के भुगतान के अभाव में व्यक्ति को या उसके पार्थिव शरीर को निजी अशासकीय नर्सिंग होम्स, चिकित्सालयों द्वारा निरूद्ध किये जाने जैसी कार्यवाहियों पर प्रभावी अंकुश लगाया जाये। संचालनालय, स्वास्थ्य सेवायें द्वारा इस संबंध में स्पष्ट निर्देश नहीं दिये गये हैं, बल्कि देयकों के भुगतान न कर पाने की स्थिति में शव परिजनों के सुपुर्द करने के संबंध में मानवीयता के आधार पर सहानुभूतिपूर्वक निर्णय लिये जाने के निर्देश मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकाारियों को दिये गये हैं। अतः राज्य शासन, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग एवं संचालनालय, स्वास्थ्य सेवायें, मध्यप्रदेश व्यक्ति एवं उसके शरीर की गरिमा के संबंध में स्पष्ट दिशा-निर्देश मिनिस्ट्री आॅफ हैल्थ एण्ड फैमिली वेलफेयर के ड्राॅफ्ट चाॅर्टर आॅफ पेशेन्ट्स राईट्स की कण्डिका क्र. 15 की भावनाओं के अनुरूप जारी करने पर विचार करे।’’

आयोग की इस महत्त्वपूर्ण अनुशंसा के बारे में राज्य शासन के लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के अवर सचिव ने परिपालन प्रतिवेदन  (कम्प्लायन्स रिपोर्ट) दे दी है। प्रतिवेदन में उन्होंने आयोग को बताया है कि ‘‘मप्र उपचर्चागृह तथा रूजोपचार संबंधी स्थापनाएं (रजिस्ट्रीकरण तथा अनुज्ञापन) अधिनियम, 1973 की अनुसूची 3 के बिन्दु क्र. 5.2 के अन्तर्गत निजी चिकित्सालयों को उपचार एवं जांच के संबंधित दरों का प्रदर्शन करना अनिवार्य है। संचालनालय, स्वास्थ्य सेवायें, मप्र द्वारा प्रदेश के सभी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएमएचओ) को निर्देशित कर दिया गया है कि सभी सीएमएचओ अपने अधीनस्थ निजी चिकित्सालयों में उपचार के दौरान मरीज की मृत्यु होने पर परिजनों द्वारा उपचार देयकों का भुगतान न कर पाने की स्थिति पर शव सुपुर्दगी के संबंध में मानवता के आधार पर सहानुभूतिपूर्वक निर्णय लेने हेतु सभी निजी नर्सिंग होम्स के संचालकों को भी सख्ती से निर्देशित करें।’’

चूंकि आयोग की अनुशंसा का परिपालन कर लिया गया है, अतः आयोग में यह मामला अब समाप्त कर दिया गया है।