चैत्र नवरात्र की शुरुआत होते ही धर्मनगरी चित्रकूट में भक्तों का हुजूम उमड़ने लगता है. हर कोई माता के दर्शन की चाह लेकर यहां पहुंचता है और नौ दिनों तक विविध रूपों में मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करता है. इसी आस्था और भक्ति के संगम में चित्रकूट का मां झारखंडी माता मंदिर विशेष महत्व रखता है. मान्यता है कि माता झारखंडी ने स्वयं धरती को फाड़कर यहां प्रकट होकर भक्तों को दर्शन दिए थे.

यह है मान्यता
माता झारखंडी का मंदिर चित्रकूट के मोहल्ला तरौंहा में स्थित है. यह मंदिर अपनी अनूठी कथा और चमत्कारी शक्तियों के कारण भक्तों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है. मंदिर के पुजारी संतोषी देवी बताती हैं कि भगवान श्रीराम के वनवास काल के दौरान जब वे चित्रकूट में निवास कर रहे थे, राजा जनक ने श्रीराम से भेंट करने के लिए अपनी सेना और अन्य देवी-देवताओं को चित्रकूट चलने का निमंत्रण दिया था. इस निमंत्रण में मां झारखंडी को भी बुलाया गया था. मां झारखंडी नेपाल से भूमिगत मार्ग से यात्रा करते हुए चित्रकूट पहुंचीं और धरती को फाड़कर यहां प्रकट हुईं. यह दृश्य देखकर सभी भक्त आश्चर्यचकित हो गए थे. मां का इस प्रकार प्रकट होना उनकी अलौकिक शक्ति का प्रतीक माना गया और तभी से यह स्थल आस्था का केंद्र बन गया.

क्यों पड़ा मां झारखंडी नाम
मंदिर के पुजारी ने बताया कि जब माता यहां प्रकट हुईं, उस समय चारों ओर घना जंगल था. माता ने स्वयं कहा था कि उनका नाम झारखंडी माता रखा जाए. झारखंडी नाम का मतलब है झाड़ियों के बीच रहने वाली देवी. माता आज भी खुले आसमान के नीचे विराजमान हैं. उनकी इच्छा के अनुसार मंदिर में पक्की छत का निर्माण नहीं किया गया है.

मन्नतें पूरी होने का विश्वास
मां झारखंडी के मंदिर में हर साल चैत्र और शारदीय नवरात्र के अवसर पर हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं. नौ दिनों तक मंदिर परिसर में भक्तों का तांता लगा रहता है. पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन और जागरण का आयोजन पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव से किया जाता है. भक्त माता के चरणों में चुनरी और प्रसाद अर्पित करते हैं. पुजारी संतोषी देवी ने बताया कि जो भी भक्त सच्चे मन से मां के दरबार में अपनी मुराद लेकर आता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है. विशेष रूप से संतान प्राप्ति की कामना से दंपत्ति यहां बड़ी संख्या में आते हैं. मान्यता है कि माता के आशीर्वाद से संतान सुख की प्राप्ति जरूर मिलती है.